नारी
नारी
नारी हूं लाचार नहीं
मुझमें है शक्ति हजार
नारी को ना करो प्रताड़ित
मै दुर्गा, काली से प्रेरित हूं।
मै कलियुग कि नारी द्रौपदी नही
लाज बचाने स्रीकृष को बुलबाऊंगी
तुम छूके देखो मेरे आंचल को
तुम्हारी लंका में आग लगाऊंगी।
नारी का आंचल दूध से भरा
नव जीवन का आशा भरोसा
सीता का रूप धरि हू आज
काली भी बंजाऊंगी।
एक दिन मेरे प्रकोप से
सारी श्रृष्टि को मिटा दूंगी।
नारी ही सम्पूर्ण जगत जननी है
नारी के बजह से ही रामायण महाभारत युद्ध हुआ है।
रूदबाड जंजीरों से बांधे हो
हालत से नही हारी हूं
नारी खुशियों का संसार है
लाखों समंदर समा जाती है नारी की ममता में
नारी दहैज के लिए तिल तिल मरती है
लोभी इंसान के नियत के आगे बलि चढ़ जाती है।
में दो साल के बची हूं
चीख चीख के कहती हूं
उमर से कच्ची हूं।
चंद मूंद माला करके सिंगार
महिसा मर्दिनी बन जाऊंगी
नारी पर बढ़े तो अत्याचार
शस्त्र सारा लेकर मौत का दर्शन करवाऊंगी।
नारी घर आंगन का मुस्कान है
रिश्तों का सम्मान है
नारी आंखो मे आसू दिल मे जुनून लिए
अंधे कानून के खोज में।
नारी चूले के आग में तपके
सारा परिवार चलाती है
नारी फिर भी इतनी सस्ती है
आज कल बाजारों में बिक जाती है।नारी आधा पेट खाके स्नेहा प्यार ममता देती
जख्म भरा दिल को आंसू से धोती
नारी का भूमिका अपरंपार है
उसे न समझो व्यापार है।
नारी लक्ष्मी सरस्वती का रूप है
नारी पर बढ़े तो अत्याचार
काली दुर्गा का स्वरूप है।
में ही बो मां बहन बेटी हु
जिसके वजह से तुम दुनिया मे आ पाते हो
नारी का भूमिका का वंदन रानी लक्ष्मीबाई
और गाजिया सुलतान है।