"नारी"
"नारी"
नारी त्याग की मूरत है,
करै रात-दिन काम।
नारी न होती जगत में,
होता काम तमाम।
नारी बेटी के रूप में,
करै पिता का नाम।
दोनों कुलों का मान बढ़ावें,
देखें सुबह न शाम।
पत्नी के रूप में जब नारी,
अपने कर्तव्य निभाती है।
पिता के घर के साथ-साथ,
पति के घर को सजाती है।
वहन के रूप में तो नारी,
प्रेम की गंगा बहाती है।
हर सावन,पर कभी न चूके,
भैया की बांह सजाती हैं।
मां के रुप में नारी के,
रूप के बारे में क्या कहना।
जन्म देती बेटों को,
झुलावें वात्सल्य का पलना।।