नारी
नारी
नारी देवी रूप हो, कष्ट सहती है हजार,
अपने परिवार बच्चों से मिलता है प्यार,
प्राण त्याग दे पल में, वो होता एक रूप,
उसकी गोदी में पले, रंग जगत या भूप।
परिवारों का पालन कर, मूर्त होती प्यार,
उसके उपकारों का ही, कर्ज रहता उधार,
उसकी कुर्बानी,श्राप कभी,नहीं जा बेकार,
बेशकीमती,मन करे प्रसन्न,ऐसा होती हार।
दया,धर्म दिल में भरा, गम सहती हजार,
बच्चे का पालन करे, देती अनमिट प्यार,
घर में दिनभर काम करे, हिम्मत व दुलार,
दान पुण्य की कहलाती,सच्ची वो अवतार।
सदियों से शोषित रही,नारी उसका नाम,
घर बाहर, खेत खलिहान,करती है काम,
घर की रखवाली करे, बच्चों को दे प्यार,
ताने सहती समाज के, कष्ट मिलेंगे हजार।
मां बाप की सेवा कर, जाती जब ससुराल,
कोशिश रखती सदा, रहे परिवार खुशहाल,
धन दौलत घर में भरे, उसका मिलता हाथ,
फिर भी दुष्ट जहान के, छोड़ते उसका साथ।
बच्ची,नारी, मां, बेटी, कितने ही उसके रूप,
निखर नहीं पाया कभी, सज्जन महान व भूप,
उसकी महिमा सदा मिले,कहलाती है अनूप,
सुख दुख सहती वो सदा,सर्दी,गर्मी और धूप।
ममता का ही रूप है, नारी जग में होता नाम,
उसका तो बस बना है,घर ही सुंदर एक धाम,
राधा बिना श्रीकृष्ण नहीं,सीता बिना नहीं राम,
हर काम में आगे मिले,फिर भी रहती अनाम।
जिसने जग में नाम कमाया, नारी का था हाथ,
कभी कभी वो सहती, लाठी,घूंसे, थप्पड़ लात,
नारी अगर नहीं जगत, सोचो क्या बने हालात,
नहीं जहां संभव मिले,नहीं बनेंगे दिन और रात।
कभी जूती समझा समाज ने,कभी दिया सम्मान,
शांत बैठी वो देखती, घर में जब पीता जन जाम,
कभी हँसे कभी रो रही, कैसा मिला उसे संसार,
बेशक चांद पर ही जाइये,नारी जग का आधार।
