नारी की कहानी मेरी जुबानी...
नारी की कहानी मेरी जुबानी...
हे मासूम सी भोली सी तू,
महकती फूलों की खुशबू सी तू,
रोशन है चांदनी सी तू,
कोमल है बादल सी तू,
तुझसे शुरु दुनिया है सारी,
तू हर कहानी का आगाज है।
ठोकर से रूकती ना तू,
चल कर हर पल थकती ना तू,
वक्त से डरती ना तू,
खाकर चोट भी थमती ना तू,
तू चले तो चलता ये जहां,
तू रुके तो रुके ये जमी, ये आसमां है ।
शिक्षा का विस्तार है तू,
सरस्वती का अवतार है तू,
अनकही कोई बात है तू,
खूबसूरती का बखान है तू,
जिसे समझ ना पाया कोई इस जगत में,
तू वो भूगोल, वह विज्ञान है ।
घर के आंगन की तुलसी है तू,
वार त्यौहार की रौनक है तू,
प्रेम का संचार है तू,
बिखरी सी दुनिया का संवार है तू,
दुनिया कहती पहेली जिसको,
तू इस पहेली का जवाब है ।
शक्ति का अवतार भी तू,
फुल कोमल गुलाब का भी तू,
शब्दों की परिभाषा भी तू,
मौन की अभिलाषा भी तू,
बोल उठे आंच जो आए खुद पर,
तू वो एक दबी आवाज है ।
रिश्तों का अहसास है तू,
दिलों को जोड़ता साज है तू,
ममता का विश्वास है तू,
जीने का एक अंदाज है तू ,
जिंदगी के कोरे कागज पर असंख्य रंग भर दे,
तू वह कलाकार, वह रंगबाज है तू ।
