इश्क़ में उड़ना चाहती हूं!!!
इश्क़ में उड़ना चाहती हूं!!!
यूं कैद ना करो मुझे इन झूठी
बंदिशों में
आज़ाद पंछी हूं उड़ जाना चाहती हूं।
तोड़ो ना मुझे बार बार इन रूढ़िवादी
बातों से, खुश हूं हर दर्द को
जोड़ देना चाहती हूं।
बेपर्दा लाख कर लो मेरे ना किए गुनाहों को,
मखमली दुपट्टा हूं, हर तंज़ पर ओढ़
लेना चाहती हूं।
कांटे क्यों ना बिछा लो पैरो में बिछे
कालीनों पर, टेढ़ी मेढ़ी राह हूं,
मंज़िल तक छोड़ देना चाहती हूं।
बांधा मुझे भी था छोटी सोच के बड़े घेरे में
पाक दिल की आवाज़ हूं, हर बंधन को
तोड़ देना चाहती हूं।
फंसा रखा हो चाहे समाज और
उसकी रितियों ने, जंगल का शेर हूं
दुनिया की भीड़ से दूर
कहीं दौड़ जाना चाहती हूं।
