नारी की जुबानी....
नारी की जुबानी....
नारी की जुबानी उसी की कहानी.....
शादी के बाद की नयी जिंदगी की
नयी शुरूआत करनी चाही
पर, आज़ादी छिन गई
ग़ुलामी की जंजीर में जकड़ गई
सबसे समझौता करती रही...
परायों को भी अपना समझती रही
अपनो को अपनापन देती रही
हर पल साथ निभाती रही
खुद को जेल का क़ैदी समझी...
घर छूटा माँ-बाप छूटे भाई-बहन सहेलियां -सगे-संबंधी छूटे...
उसकी आज़ादी छीन गई.....
घूमने की आजादी...
पहनने की आजादी...
हँसने-बोलने की आजादी....
आने-जाने की आजादी छूट गई।
ग़ुलामी मिली खाना बनाने की,
ससुराल में सेवा-सत्कार की
डांट-फटकार सहने की।
घर भर के कपड़े धुलने की।
उन्हें घर बैठे नौकरानी मिली ।
साथ में दहेज़ लाने वाली
वंश बढ़ाने वाली मशीन
रोबोट की तरह काम करती
बिना तर्क किये हर सही-ग़लत का
फरमान तामील करने वाली..।
शादी के बाद अपनी आज़ादी
का रोना रोने वाले..संस्कारी मर्द
एक बार दूसरे तरह से सोच के देखो फ़र्ज़ करो...शादी के बाद
तुम्हें अपना घर...
माँ-बाप भाई बहन गाँव
मित्र सब छोड़ना पड़े।
जींस-टी शर्ट की जगह
साड़ी पहननी पड़े।
घर में बंद रहना पड़े
खाना बनाना पड़े
बर्तन-कपड़े धुलने पड़े
डांट-फटकार सहना पड़े
आने-जाने पे पाबंदी लग जाए
तो क्या हाल होगा तुम्हारा ?
आगे से दोष देने से पहले
अपने बारे में सौ बार सोचना
अपने पार्टनर को इंसान समझो मशीन नहीं,
साथी समझो
नौकरानी नहीं.....।
उसका हाथ बंटाओ
फ़रमान मत सुनाओ
हर काम मे उसके साथ रहो
आज़ादी दीजिये क़ैद नहीं
प्यार कीजिए सम्मान लीजिए
दया मत दिखाइये....
सब कुछ छोड़ के आई है
तुमसे अधिक आज़ादी
हक़ बराबरी और सम्मान
की अधिकारी हैं।
उस लड़की का दोष मत दो
उसकी कमजोरी का
फायदा मत उठाओ
ये बात जिस दिन
आपके भेजे में घुस गयी
ज़िन्दगी और बीवी बहुत
ख़ूबसूरत दिखने लगेगी
घर भी महकता चहकता
खुशनुमा बन जायेगा...