नारी के हौंसले
नारी के हौंसले
प्रतिस्पर्धा कड़ी थी।
नारी डटकर खड़ी थी।
जीत किसकी होगी?
चर्चा इस पर बड़ी थी।
सबसे अनजान आंखें लक्ष्य पर गड़ी थी।
कई आकर चले गए।
लेकिन वह अकेली अड़ी थी।
परीक्षा की घड़ी थी।
विचारों की तभी लगी झड़ी थी।
लोगों की हँसी भी लग रही बड़ी थी।
अपनों की जिम्मेदारी लक्ष्य भुला रही थी।
अंतर्मन की गूंज लेकिन हौसले बढ़ा रही थी।
आसान है, कर रही हूं, कर लूंगी।
खुद को समझा रही थी।
एक कदम आगे बढ़ा।
दूसरे के इंतजार में।
कब तक इंतजार करवाएगी।
चल लक्ष्य साध।
विजय पताका तेरी ही लहराएगी।
अंतर्मन की प्रखरता क्या अब भी न सुन पाएगी।
संबल बढ़ा नारी का।
सागर सी शांत थी।
जीत पहने,
नारी का गौरव बढ़ा रही थी।