नारी जीवन
नारी जीवन
इक प्रश्न चिन्ह? मानवता पर
ऐसी भी क्या मजबूरी है?
जन्म दिया जिसने सबको
रोकर जीना मजबूरी है।
हर युग में छली गई नारी
अपमान सहा प्रतिकार हुआ
सबके छलने का रूप अलग था
जीवन दुरूह दुश्वार हुआ।
हर पग पग पर इस जग में,
कब किसने ये समझा है?
नारी की क्या मजबूरी है?
रिश्तों में बंधकर रहना,
दुख को अभिव्यक्त न करना।
फिर भी जीना बहुत जरूरी है,
नारी जीवन की मजबूरी है।
नारी तपती है, पीड़ा सहती है
ममता सहज लुटाती है।
गौरी सीता सावित्री सी इसे
कहते हैं,
बस कहने की मजबूरी है
सत्य न्याय से शायद सबकी दूरी है।
आज के इस पाखंडी युग में,
नारी सबला बने जरूरी है।।
