नशा मुक्ति
नशा मुक्ति
चारो ओर आग में झुलस रहा है बचपन,
कहो अब कैसे बुझाएं इस आग को।
घर का कर्णधार ही नाश कर रहा है तन-मन,
कहो अब कैसे धोएं इस दाग को।।
घर की शांति को खण्ड-खण्ड करता,
ऐसे जनक पे ना ऐतबार कीजिए।
आने वाली पीढ़ियों में विनाश बीज बो रहा,
ऐसे विद्रोहियों का सुधार शीघ्र कीजिए।।
नशे की लत में जो बेचते हैं घर-बार,
संत्रास में पल रहा है पूरा परिवार।
कहो फिर कैसे शांति गीत गाएं अपने द्वार,
प्रहरी ही जब बेचने लगा है दरबार।।
प्यार से दुलार से या डरा के बेहिसाब,
ध्वंस के इस पंक से हाथ खींच लीजिए।
नशामुक्त जीवन ही है बेमिसाल,
सत्य यह उनके वक्ष में उतार दीजिए।।