नारी जीवन
नारी जीवन
जब से जन्म हुआ उसका
वह यही तो सुनती आयी है
अमानत है वो किसी और की
अरे बेटी..तू तो पराई है..
एक दिन पराये घर उसे जाना है
अनजाने लोगों को अपनाना है
सीख सलीके काम धाम सब
हर कर्तव्य को उसे निभाना है
अगर बेटा अपना खून है तो
होती बेटी आखिर पराई क्यूँ
जब साथ में दोनों पले बढें तो
होती बेटी की आखिर विदाई क्यूँ
जब वह ससुराल पहुँचती है
तो नये रिश्ते को अपनाती है
क्या मॉं बाप ने यही सिखाया
हर भूल पर यह ताना पाती है
तुम्हारे घर में ऐसा चलता होगा
हमारे घर में ये नही चल पायेगा
उसका घर है आखिर कौन सा
क्या कोई उसको ये बतलायेगा
घर परिवार हो या समाज हो वो
कर्तव्य परायण हो सेवा करती है
फिर होता है सौतेला व्यवहार क्यूँ
तिरस्कार व अपमान वो सहती है
परिवार हो समाज या दुनिया हो
अब ये हम सबका दायित्व है
इस सोच को प्रस्थापित करना है
कि सबसे अहम उसका अस्तित्व है
नारी ही जननी है इस संसार की
रिश्तों को अपने खून से सींचती है
फिर भला वो पराई कैसे हुई जब
सब पर वो जीवन समर्पित करती है
