नारी एक इन्सान
नारी एक इन्सान
कौन हूँ में और कौन नहीं
भीड़ मे तन्हा गुम -सुम कहीं
नज़रों से बिखरता मोती हूँ
हर पल जीती मरती रहती हूँ
एक ख्वाब् हूँ जो अधूरा छूट गया
आँख खूली और टूट गया
एक आस् हूँ कच्ची- पक्की सी
एक उम्मीद हूँ झूठी -सच्ची सी
दिल का विरानापन हूँ में
बेरंग सून- सान चमन हूँ में
एक फ़रियाद् हूँ आधी-अधूरी सी
एक आरज़ू हूँ कच्ची पूरी सी
एक बच्चे का टूटा खिलोना हूँ
दोनो आँखों का एक सा रोना हूँ
दिल ही दिल मे जिसने दम तोड़ दिया
ऐसा एक अरमान हूँ में
जहाँ कोइ आता जाता ना हो
ऐसा उजड़ा बिखरा मकान हूँ में
जिसकी कोइ पूछ ना हो
एक ऐसा सामान हूँ में
सासो की डोर से अटकी
पल पल तड़पती जान हूँ में
जिस पर से कोइ गुज़रे ना
एक ऐसी अनजान सड़क हूँ में
अश्कों के साथ बहता एक
ऐसा जज़्बात में
कौन हूँ में मालूम नही
हाँ सचमुच मालूम नहीं
तड़पती धूप मे जो साथ रहती है
गमो की वो परछाई हूँ में
नमी से जो बिखर गया
आँखो का वो फ़ैला काजल हूँ में
जिसका कोई ठिकाना ना है
आवारा सा एक बादल हूँ
पहली बारिश् मे जो बह गया
मिट्टी का घरोन्दा हूँ में
दर्द जिसके ज़र्रे ज़र्रे से टपक्ता है
,ऐसा वीराना खण्डर हूँ में
जिसे हर कोई ठोकर मारे
रास्ते का वो पत्थर हूँ में
जो कभी पूरी ना हो सके
एक ऐसी चाह हूँ में
दिन के बाद जो बिख़र जाती है ढलती हुई वो शाम हूँ में
इस भीड् मे जो ग़ुम हो गया है
बस वही एक नाम हूँ में
कौन हूँ मै मालुम नही
बस एक अदद् इन्सान हूँ में
नारी हूँ
हाँ नारी हूँ एक सम्मान हूँ मै
हाँ एक इन्सान हूँ में
हा एक इन्सान हूँ में
