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Irfan Ahmed

Inspirational Others

5.0  

Irfan Ahmed

Inspirational Others

नारी एक इंसान

नारी एक इंसान

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कौन हु मै और कौन नही,

भीड़ मे तन्हा गुम सुम कही,


नज़रों से बिखरता मोती हू,

हर पल जीती मरती रहती हू

एक ख्वाब् हु जो अधुरा छूट गया,

आँख खुली और टूट गया।


एक आस् हु कच्ची पक्की सी,

एक उम्मीद हु झूठी सच्ची सी,

दिल का विरानापन हु मै,

बेरंग सुन सान चमन हु मै,


एक फ़रियाद् हु आधी अधुरी सी,

एक आरज़ू हु कच्ची पुरी सी,

एक बच्चे का टूटा खिलोना हू,

दोनो आँखों का एक सा रोना हू।


दिल ही दिल मे जिसने दम तोड दिया,

ऐसा एक अरमान हु मै,

जहा कोइ आता जाता ना हो,

ऐसा उजड़ा बिखरा मकान हु मै,


जिसकी कोइ पूछ ना हो,

एक ऐसा सामान हु मै,

सासो की डोर से अटकी,

पल पल तडपती जान हु मै।


जिस पर से कोइ गुज़रे ना,

एक ऐसी अन्जान सड़क हु मै,

अश्कों के साथ बहता,

एक ऐसा जस्बात हु मै।


कौन हु मै मालुम नही,

हा सचमुच मालुम नही।


तडपती धूप मे जो साथ रहती है,

गामो की वो परछाई हू मै,

नमी से जो बिखर गया,

आँखो का वो फ़ैला काजल हु मै।


जिसका कोई ठिकाना ना है,

आवारा सा एक बादल हू,

पेहली बारिश् मे जो बह गया,

मिट्टी का घरोन्दा हू मै।


दर्द जिसके ज़र्रे ज़र्रे से टपक्ता है,

ऐसा वीराना खण्डर हु मै,

जिसे हर कोई ठोकर मारे,

रास्ते का वो पत्थर हु मै।


जो कभी पुरी ना हो सके.

एक ऐसी चाह हु मै.

दिन के बाद जो भिखर जाती है,

ढलती हुई वो शाम हु मै।


इस भीड् मे जो घुम गया है,

बस वही एक नाम हु मै,

कौन हु मै मालुम नही,

जो भी हु एक अदद् इन्सान हु मै।


नारी हु, हा नारी हु एक सम्मान हु मै,

हा एक इन्सान हु मै, हा एक इन्सान हु मै।


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