ना जानूँ मैं पूजा वंदन
ना जानूँ मैं पूजा वंदन
ना जानूँ मैं पूजा वंदन
ना जान मैं कोई रीत, नारी गौरव है, अभिमान है
नारी ने ही तो रचा ये संसार है
नारी ही देवी नारी ही शक्ति
इनको हमारा सादर प्रणाम है।
दुनिया के रंगों में ढलती, जाने कितनी मुसीबतें झेलती
फिर भी इनको ना खुद पे अभिमान है
ये वो शक्ति है जिनको नतमस्तक हमारा प्रणाम है।
सुर सरगम में तान लता का
सुंदरता में ऐश्वर्या का नाम है
उड़ान भरती बन के कल्पना
तो खेल जगत में सिंधू इसकी पहचान है।
गंगा जैसी पावन है तो लक्ष्मी जैसी शीतल,
माता वैष्णवी जैसी आभा है तो सावित्री जैसी चमक।
सौंदर्य में मोहिनी तो ज्ञान में सरस्वती,
भंडार में अन्नपूर्ण है तो धन में मां लक्ष्मी।
यहीं जगजन्नी, यहीं जग माया
जिन्होंने हमें दुनिया में लाया।
यही भार्या, यही अर्धांगणी,
यही माता का स्वरूप है,
जन्म देती संतान को जो
इनका एक अनुपम स्वरूप है।
नाम करती रोशन यही हमारी शान है
किरदार निभाती अनेकों ये तो हमारी पहचान है।
अपने सपनों को त्याग कर
है सबके स्वपन को सजाने वाली
छोर अपने रंग को है
विभिन्न रंगों में ढलने वाली।
सशक्त है वो साकार भी है ये
नारी है, जीवन का सार भी है ये।
नाज़ुक सी कली है, तो अंगारों में फौलाद है
जो बात आए आत्म सम्मान पे
तो काली का रूप इनका विकराल है।
नहीं है ये अबला नहीं है बेचारी
ये तो है दुर्गा, यही है शेरोवाली।
विश्व स्वरुपा जग जननी जग की रीत निभाती है,
विकट परिस्थितियों में भी ये सदैव साथ निभाती है।
कदम से कदम मिलाकर चलना यही इसकी सीख है
बुलंद हौसले का परिचय देकर
बनती तुम्हारी प्रीत है।
मैं तो बस इतना जानूँ
तू ही मेरी माता ,तू ही मेरी संगीत।
अष्ट भुजाओं वाली मां दुर्गा ,
तेरे चरणों में अर्पण है
मेरा यह जीवन,
अब तू ही पार लगाना भवसागर से
मेरा यह चितवन!
मैं अबुध मैं अज्ञानी, मैं ही वो
बालक जिसे तुमने बनाया ज्ञानी
फिर भी तेरी दर्शन को
दर - बदर आया माते,
दे दो दरस ना करो विलंबा ,
तू ही मेरी माता
तू ही मेरी जगदम्बा।
करूँ कैसे प्रसन्न तुम्हें
मैं वो रीत ना जानूँ ,
दो पुष्प लूं वंदन मैं
इससे ही तेरा प्रेम पाऊं।
स्वीकार करो विनती मेरी मैया,
अब भवसागर से पार लगा दो
मेरी नैया।
जय मां भवानी
जय मां जगदम्बा
जय माता दी