ना आना इस देश लाडो
ना आना इस देश लाडो


वो नाजुक से पुष्प की ही तरह एक पौधे का सौंदर्य बढ़ाने आई थी ,
उसकी खुशबू से वातावरण की आबोहवा में खुशहाली छाई थी ,
हम सबकी तरह वो भी इस धरती पे जीवन जीने आई थी
वो भी अपने ख्वाबों को पंख लगा कर हवा में उड़ने आई थी ,
लेकिन फिर वो काली रात आई थी ,
जब उसके जिस्म को निचोड़ कर हैवानों ने लहू की धारा बहाई थी ,
देख नजारा हैवानियत का धरा ,अम्बर और वृक्ष सभी ने अश्रुधारा बहाई थी,
जीवन से संघर्ष कर वो अभी भी अपनी साँसे ले रही थी ,
थी उम्मीद उसको की शायद मिल जाएगा न्याय ,
आखरी सांस तक वो लड़ रही थी ,
लेकिन राजनीति के दलदल में कानून व्यवस्था भी दम तोड़ चुकी थी ,
एक मृत और निर्मम समाज से वो बेटी भी नाजायज उम्मीद कर रही थी |