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मुश्किल को धैर्य

मुश्किल को धैर्य

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सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना

मैं पेंच को खोलने के बजाए

उसे बेतरह कसता चला जा रहा था

क्योंकि इस करतब पर मुझे


साफ सुनाई दे रही थी

तामशबीनों की शाबाशी और वाह-वाह!

आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था


जोर जबरदस्ती से

बात की चूड़ी मर गई

और वह भाषा में बेकार घूमने लगी !


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