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SANGEETA Bhaskar

Abstract

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SANGEETA Bhaskar

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मुर्दा

मुर्दा

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जर्रा जर्रा मुर्दा ना होता,

अगर इन्सान कुछ ऐसा होता

घर छोटा है तो क्या,

दिल थोडा बड़ा कर लेता,

अगर इन्सान कुछ ऐसा होता।


नही डेहरी भर मुट्ठी भर अनाज से पेट भर लेता,

अगर इन्सान कुछ ऐसा होता।

हाथों से खंजर फेक कर फूल बांटता अपनो को,

अगर इन्सान कुछ ऐसा होता।


जुबान को तीखी छूरी की तरह नहीं,

मिश्री की तरह इस्तेमाल करता,

अगर इन्सान कुछ ऐसा होता।

आंखों मे हवस ना होती बस सुंदरता की झलक होती,

हर दिल में छल ना होता, बस प्यार ही प्यार बस,

अगर इन्सान कुछ ऐसा होता।


तो जर्रा जर्रा मुर्दा ना बनता,

मुर्दा ना बनता

मुर्दा ना बनता।


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