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SANGEETA Bhaskar

Others

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SANGEETA Bhaskar

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नारी

नारी

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उन आंखों में सपने बेशुमार थे,

कभी उसके दिल में भी हसरतों का समुंदर था,

यूँ तो कहने को घर की लाडली थी,

क्या पता था एक दिन आंसुओं का समुंदर ले कर जायेगी बाबुल के घर से,

फिर तो जैसे हसरतें हसरतें बन कर रह गई,

सपने बस आंखों में कैद हो कर रह गए,

उड़ते पंछी के पंख कब कट गए पंछी को भी नहीं पता चला,

धीरे धीरे रिश्तों ने ही रिश्तों में ऐसा उलझाया की अपने आप को ही भूल चली,

वो कोई और नहीं समाज में अपना अस्तित्व तलाशती एक नारी है.…...... एक नारी है.......


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