मुक्तक
मुक्तक
शब्द से शब्द मिलते ही गान बन गया
इन धड़कते दिलों की पहचान बन गया
मैं खो ही गया था इस जहां की भीड़ में
कि अब सब दिलों की अजान बन गया
वक्त के क्रूर पल का कुछ भी भरोसा नहीं
कि खुल के जी लो जीवन का भरोसा नहीं
समय भर देता है बड़े से बड़े 'ज़ख्म' को
फिर इंसान को वक्त पर क्यों भरोसा नहीं
