हरि स्तुति
हरि स्तुति
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'हरि' आओ तुम द्वार हमारे
अंखियाँ' राह निहार रही हैं
इन अंखियों से बहते आँसू
कब से 'तुम्हें' पुकार रहे हैं।
और नही कुछ चाह प्रभु' है
दर्शन की प्रभु आस लगी है
अंखियाँ धुंधली हुई चाह में
जाने कब प्रभु' मिलें राह में।
अब तो है प्रभु सुन लो मेरी
अन्तिम इक्षा पूरी करो मेरी
कहीं ना फिर हो जाए देरी
इतनी अर्ज प्रभु है बस मेरी।
अब धीरज को तेरी चाह है
तुझमे ही बसी मेरी सांस है
मैं तुझ पर जाऊँ' बलिहारी
बस ये विनती' सुनो हमारी।
'हरि' आओ तुम द्वार हमारे
अंखियाँ' राह निहार रही हैं
इन अंखियों से बहते आँसू
कब से 'तुम्हें' पुकार रहे हैं।
