मुक्तक : जुनूनी इश्क
मुक्तक : जुनूनी इश्क
एक मासूम सा चेहरा मेरे दिल को भाने लगा है
नशीली आंखों का इशारा रातों को जगाने लगा है
गुलाबी होठों पर थिरकती है कातिलाना मुस्कान
रेशमी बालों का गजरा अंग अंग महकाने लगा है
उनके इश्क का जुनून सिर चढ़कर बोल रहा है
इश्क के समंदर में दिल किश्ती सा डोल रहा है
मतवाली चाल के नशे ने मदहोश कर दिया है "हरि"
मिसरी सी बोली का जादू कानों में रस घोल रहा है
कोई इश्क में दिल दे बैठा तो किसी की जान ले बैठा
किसी का इश्क परवान ना चढा तो चेहरा जला बैठा
जुनूनी इश्क को कोई कातिल क्या समझेगा ऐ दोस्त
ये तो वो इबादत है जो यार को अपने खुदा बना बैठा।