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Sunita Acharya

Romance

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Sunita Acharya

Romance

मुझे तुम मिल जाती हो...

मुझे तुम मिल जाती हो...

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जब जब ढूंढ़ने निकलता हूँ खुद को

मैं तो नहीं मिलता, मुझे तुम मिल जाती हो

कभी मेरे आंसुओं में भीगी हुई,

या कभी होठों पे मेरे मुस्कान सी सजी हुई।


कभी ओस की बूंद सी खिड़की से सटी हुई

या कभी मेरे कुर्ते में बटन सी सिली हुई

कभी मंदिर में मूरत सी सजी हुई

या कभी मन्नत के धागों सी मेरी कलाई पर सजी हुई।


कभी डायरी के पन्नों में गुल सी छिपी हुई

या कभी धूप जैसी मेरे आँगन में खिली हुई

कभी धड़कनों सी साँसों में धड़कती हुई 

और कभी मैं बन के मेरे अंदर ही तड़पती हुई।


इसीलिए शायद जब ढूंढ़ने निकलता हूँ खुद को

मैं तो नहीं मिलता, मुझे तुम मिल जाती हो।


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