STORYMIRROR

sandhya kashyap

Abstract

2  

sandhya kashyap

Abstract

मृगछाया

मृगछाया

1 min
179

मन के भीतर छिपा है तीतर 

पल पल वो बहकाये

भूली बिछड़ी पग छाया संग 

मिलकर रास रचाये 


दिखे आडम्बर मन के अंदर 

पग पग डोले खाये 

कश्ती की मृगछाया देख

सागर में गोत लगाये


घटनी घटना घाट जाये 

तू क्यों पल पल पछताए 

देख विलय की मधुर राग 

वो मन ही मन मुस्काये


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract