मृगछाया
मृगछाया
मन के भीतर छिपा है तीतर
पल पल वो बहकाये
भूली बिछड़ी पग छाया संग
मिलकर रास रचाये
दिखे आडम्बर मन के अंदर
पग पग डोले खाये
कश्ती की मृगछाया देख
सागर में गोत लगाये
घटनी घटना घाट जाये
तू क्यों पल पल पछताए
देख विलय की मधुर राग
वो मन ही मन मुस्काये
