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Basudeo Agarwal

Abstract

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Basudeo Agarwal

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मनहरण घनाक्षरी "होली के रंग"

मनहरण घनाक्षरी "होली के रंग"

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होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,

मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।


हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच,

मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।


रंगों में हैं सराबोर, हुड़दंग पुरजोर,

शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।


ऊँच-नीच सारे त्याग, एक होय खेले फाग,

'बासु' कैसे एकता का, रस बरसात है।।


*********


फाग की उमंग लिए, पिया की तरंग लिए,

गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।


बाँके नैन सकुचाय, कमरिया बल खाय,

ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।


बिजुरिया चमकत, घटा घोर कड़कत,

कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।


पायल की छम छम, बादलों की रिमझिम,

कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।


****************


बजती है चंग उड़े रंग घुटे भंग यहाँ,

उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।


उड़ता गुलाल भाल लाल हैं रसाल सब,

करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।


मार पिचकारी भीगा डारी गोरी साड़ी सारी,

भरे किलकारी खेले होरी सारे बाग में।


'बासु' कहे हाथ जोड़ खेलो फाग ऐंठ छोड़,

किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।



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