मनहरण घनाक्षरी "होली के रंग"
मनहरण घनाक्षरी "होली के रंग"
होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,
मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।
हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच,
मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।
रंगों में हैं सराबोर, हुड़दंग पुरजोर,
शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।
ऊँच-नीच सारे त्याग, एक होय खेले फाग,
'बासु' कैसे एकता का, रस बरसात है।।
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फाग की उमंग लिए, पिया की तरंग लिए,
गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।
बाँके नैन सकुचाय, कमरिया बल खाय,
ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।
बिजुरिया चमकत, घटा घोर कड़कत,
कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।
पायल की छम छम, बादलों की रिमझिम,
कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।
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बजती है चंग उड़े रंग घुटे भंग यहाँ,
उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।
उड़ता गुलाल भाल लाल हैं रसाल सब,
करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।
मार पिचकारी भीगा डारी गोरी साड़ी सारी,
भरे किलकारी खेले होरी सारे बाग में।
'बासु' कहे हाथ जोड़ खेलो फाग ऐंठ छोड़,
किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।
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मनहरण घनाक्षरी विधान :-
मनहरण को घनाक्षरी छंदों का सिरमौर कहें तो अनुचित नहीं होगा। चार पदों के इस छन्द में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 31 होती है। घनाक्षरी एक वर्णिक छंद है अतः वर्णों की संख्या 31 वर्ण से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। चारों पदों में समतुकांतता होनी आवश्यक है। 31 वर्ण लंबे पद में 16, 15 पर यति रखना अनिवार्य है। पदान्त हमेशा दीर्घ वर्ण ही रहता है।
परन्तु देखा गया है कि 8,8,8,7 के क्रम में यति तथा पदान्त ह्रस्व-दीर्घ (12) रखने से वाचन में सहजता और अतिरिक्त निखार अवश्य आता है। पर ये दोनों ही बातें विधानानुसार आवश्यक नहीं है।
बासुदेव अग्रवाल नमन