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Sheela Sharma

Abstract

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Sheela Sharma

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मन

मन

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सुन विद्युत ओ गतिमय प्रकाश

तीव्रगति से चलती ध्वनि सुन

तत्क्षण फैलती चांदनी सुन

जितनी भी तीव्र गति से चमको बहो

व्यर्थ तुम्हारी मुझसे होड़


मैं मानस का परिचायक

इच्छाओं का नायक अडिग रहूँ

खुद्दार बन, साहस की समिधा रख

कर्तव्यों का यज्ञ करूँ

दिनकर से हो तापित

शीतलता को अन्दर में,

मैं पैदा करूँ

समन्दर के खारे पानी से

सींचा जाऊँ

अमृत को अंतर से पैदा करूँ


अदम्य जोश मुझ में,

लक्ष्य का संरक्षण

अनुभवों का संकलन है

परिस्थित की परिणिति,

विश्वास की अभिव्यक्ति

उर्जा का संर्वधन है


मेरा मकसद है मंज़िल,पड़ाव

कभी कशमकश की धूप छाँव

वक्त्त चाहे पाषाण रखूँ आत्मसंयम

निष्ठा से करूँ पार बाधाओं को


मैं ही शाश्वत अन्तर्गाथा 

जीवन का सत, अन्तर्गति

मेरा वजूद, मेरी हस्ती

इहलोक की परिभाषा

अपवर्ग की अभिलाषा


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