मन
मन
निर्मल जल सा मन दर्पण
स्वच्छंद पवन सा मन अर्पण
प्रीत की साधना मे तल्लीन
करूँ तेरे सम्मुख समर्पण
न हो भय न रीत कोई
न हो दिल मे टीस कोई
हम तुम हो और न होए कोई
रुहें इक दूजे में होए खोई।
निर्मल जल सा मन दर्पण
स्वच्छंद पवन सा मन अर्पण
प्रीत की साधना मे तल्लीन
करूँ तेरे सम्मुख समर्पण
न हो भय न रीत कोई
न हो दिल मे टीस कोई
हम तुम हो और न होए कोई
रुहें इक दूजे में होए खोई।