मन की बात
मन की बात
अंतर्मन के कुरुक्षेत्र में
धर्मयुद्ध चल रहा निरंतर
सूर्योदय से सूर्यास्त तक
सूर्यास्त से फिर सूर्योदय तक
निरंतर अनवरत अनंत सा,
अंतर्मन के कुरुक्षेत्र में
प्रश्न खड़े हैं योद्धा से
शस्त्र उठाए
अस्त्र उठाए
आघात प्रत्याघात करते
लड़ते मरते आहत होते,
ये प्रश्न भरे हैं पीड़ा से
दुविधा से आशंका से,
कुछ हारे से कुछ मारे से
कुछ राह खोजते भटके से
कुछ सीना ताने बढ़ते से
सर्वनाश को आतुर से,
अंतर्मन के कुरुक्षेत्र में
धर्मयुद्ध चल रह निरंतर,
प्रश्नों का संहार बने से
उत्तर भी हैं खड़े हुए
तर्क वितर्क कुतर्क
हाथ में तलवारों से लिए हुए
प्रश्नों का सिर कुचल कुचल कर
विजय दंभ से भरे हुए,
किंतु
खड़े हैं हारे से
प्रश्नों के आघातों से
अंतर्मन के कुरुक्षेत्र में
धर्मयुद्ध चल रहा निरंतर।