मन की बात
मन की बात
न डरो न रुको तुम्हारा प्रयाण
ये निशि रात तो जाएगा और उषा किरणों तो आएगा
जीवन में खुशी लाएगा कुसूमों के जैसे
मोमबत्ती तो जलाकर देती थी प्रकाश
वैसे ही हर स्त्री जलाकर ही इस जगत
को लाती है प्रेम की पुष्प का मला
प्रेम की माला पहनकर संभालती है
परिवार ये ही स्त्री का मन
