मन के दर्पण में
मन के दर्पण में


प्रियतम का आनन दिखता है, मन के दर्पण में।
स्वाति-बूँद पाने को आतुर, प्यार समर्पण में।।
मन-चातक कितना है पावन,
घन की प्रत्याशा है सावन,
कब से भेज रहा है धावन,
अब प्यासे चातक को राहत, मिलती तर्पण में।
प्रियतम का आनन दिखता है, मन के दर्पण में।।
कंचन सा मेरा गोरा तन,
सिहरन देती छुअन प्राण धन,
मांग रहा प्रियतम आलिंगन,
सुख सानिध्य सौख्य पाता है, सब कुछ अर्पण में।
प्रियतम का आनन दिखता है, मन के दर्पण में।।
धैर्य नहीं खोता मन किंचित,
ऋतुएं कर देती हैं चिंतित,
विरह हृदय का होता चिह्नित,
नश्तर चुभो रही कोयलिया, रक्त स्रवित व्रण में।
प्रियतम का आनन दिखता है, मन के दर्पण में।।
सावन से साजन की दूरी,
कैसी यह मेरी मजबूरी,
कब होंगी आशाएं पूरी,
रूप सलोना परिलक्षित है, पावन कण-कण में।
प्रियतम का आनन दिखता है, मन के दर्पण में।।
मन तन हृदय सभी हैं घायल,
मौन हुई है मुखरित पायल,
प्यार तंतु फिर भी हैं तायल,
भ्रमर महकती प्यार वीथिका, तव अभिरक्षण में।
प्रियतम का आनन दिखता है, मन के दर्पण में।।