"मकर सक्रांति"
"मकर सक्रांति"
मकर सकरात का आया है, पावन त्योंहार
नाचो, झूमो, पतंग उड़ाने का आया है, त्योंहार
पोंगल, लाहिड़ी, आदि रूप में मनाते, धुंआधार
यह त्योंहार, मिलकर मनाता है, हमारा परिवार
मां-बापू को पहनाते सुंदर वस्त्र इस त्योंहार
ओर फिर छोटे लेते है, बड़ो का आशीर्वाद
आज वस्त्र, तिल दान से मिले, पुण्य, अपार
इसदिन से खत्म होता है, मल माह विकार
शुभ कार्य आज से फिर होते है, अंगीकार
तब तक सूर्य उत्तरायण का किया, इंतजार
जब तक न आया, मकर सक्रांति का वार
भीष्म पितामह ने न किया था, देह-त्याग
आज ही किया भीष्म ने, मृत्यु को स्वीकार
बहुत ही पवित्र है, मकर सक्रांति का वार
इस दिन बड़ा पौराणिक महत्व का है, सार
आज सूर्यदेव, शनिदेव के जाते है, घर-द्वार
आज, ऋतु परिवर्तन का भी होता, चमत्कार
आज से सर्दी की भी कम हो जाती है, बयार
तिल के लड्डु खास दिया जाता है, उपहार
आज ही के दिन गंगा नदी का हुआ, उद्गार
पर साखी जब तक न मिटे हृदय, अंधकार
व्यर्थ है, उजालों के दीपक जैसे सब उपहार
मकर सकरात का तब ही सार्थक है, त्योंहार
जब भूखों को भोजन, बेजुबानों से करे, प्यार।