मकान
मकान
मैं सोचता रहा यह
मकान कब घर बनेगा
कब घर मेरा परिवार कहलाएगा
मन में एक आस थी
कभी ना कभी तो मकान घर होगा
कहते चुंबक से लोहा भले ही छूट जाए
पर दामन से आस छूटती नहीं
यही विश्वास मन में था मेरे
कभी तो मकान मेरा घर बनेगा
लेकिन मेरी तो आस उस जैसी थी
जो बगीचा में बेलों पर लगे
खट्टे अंगूरों को दूर से ही ताकता है
पर क्या पता था आज संगठन
और संघर्ष की भीड़ में
घर मकान में बदलने लग गया
प्रेम संवेदना सब मिटती चली गई
मानव मशीन बन गया
परिवार घर बन गया
और घर मकान बन गया!!