STORYMIRROR

Dilip Kumar

Tragedy

4  

Dilip Kumar

Tragedy

मजदूर

मजदूर

1 min
270

शिक्षक मजदूर नहीं, 

मजबूर हैं लेकिन,

न्यूनतम मजदूरी के 

हकदार भी नहीं,

बेगार हैं लेकिन !


नियोजित, अनुबंधित, मानदेय 

पर नियुक्त कर 

कचड़ा- कबाड़ बना दिया है 

हमारी जिंदगी को सबने !

चिल्ला-चिल्ला कर, 

गला खराब कर लिया है अपना। 


भागीदार हैं हम चुनाव में,

जनगणना और जातीय गणना में,

दोपहर का भोजन बनाने में

खेल और खाना खिलाने में 

पैरों में पड़े हैं छाले, 

चप्पल भी टूटी पड़ी है, 

वेतन भी असमय, 

यही व्यथा कथा है मेरी !


कुछ दिन बाद सेवा- मुक्त हो जाऊंगा 

आशा लिए हुए, आशा लगाये हुए 

आशा वर्कर से भी ज्यादा 

दुर्गति हुई है हमारी 

सेवामुक्ति पर भी 

सद्गति नहीं मिलती है जिन्हें!! 

जीवन मुक्त होने के बाद भी !


मजदूर दिवस पर एक बात 

तुम्हारी आने वाली पीढ़ियाँ भी 

इस अन्याय, अत्याचार और अपकार पर 

शापित होकर -

कुंठा और अवसाद से पीड़ित होकर 

मानदेय पर पलेंगी ! 


Rate this content
Log in

More hindi poem from Dilip Kumar

Similar hindi poem from Tragedy