मज़दूर व किसान
मज़दूर व किसान
हाथ पर हाथ धरे रोते रहते मज़दूर व किसान,
मेरा भारत देश महान मेरा भारत देश महान ।
मज़दूर व किसान दोनों आस पर ही टिके,
आधे दिन जीवन के वे उपवास पर भी टिके।
कई बार होता उनको कोई काम ही ना मिले,
फिर भटकता रहता मज़दूर आराम ही ना मिले ।
श्रम किया बहुत है पर खेतों में सूखती फसलें,
अन्नदाता है वो फिर भी दर्द बैंक कर्ज का मसले।
खरी दोपहर में मज़दूर व किसान धूप में मिले,
दर्द अपना कौन किस किस से कहें होंठ हैं सिले।
ठिठुरते सर्दी में उनके नसें व पसलियाँ भी तड़के,
गर्मी नौतपा गर्म मौसम उन्हीं ग़रीबों पर भड़के।
उनके साथ ही भूखी रहती उनकी पत्नी व संतान,
अन्नदाता ,मज़दूर को किसी से ना मिला सम्मान।
अन्नदाता उगाता है अन्न किस्मत का यही विधान,
मेरा भारत देश महान मेरा भारत देश महान।