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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Inspirational

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Inspirational

मित्रता

मित्रता

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अद्भूत सृष्टि रचयिता ने रचाई 

माता पिता बहन और भाई 

संंग आई फिर एक लुुगाई

इन सबके संग ऊपर सबसे

शोभा मित्रता की दी उसने सजाई।।


सबसे सच्च मित्रता

माँ संग सुहाई 

जीने की जिसनेे जुुगत सिखाई 

पिता की मित्रता में थी 

थोङी थोङी अलौकिक कड़ाई 

फलसफा जीने का बिन झुुुके

इसी मित्रता ने तो पढाई लिखाई।।


मित्रता मेें जुुडकर

बहन भाई की जब बारी आई 

मित्रता इनकी क्या खूब भाई 

पर थी कहीं कहीं कभी कभी

इस मित्रता में बिन बात कस कर लड़ाई 

समझ से परे भले यह बात रही

प्रीत आपस की तो इसी ने तो बढाई।।


मित्रता का मनभावन रूप एक फिर संंग आई 

जब हुई एक मित संग 

हुुई जन्म जन्म के साथ की रस्म निभाई 

तनय तानिया नए संगी बन छाए

इस मित्रता से मिली मित्रता को

अगम अपुँँहच गजब की ऊँचाई।।


नहीं भूलते कुछ बिछुड़े से स्नेही 

साथ सब तो कितने गमले टूटे

साथ वह तो कितने जुमले फूटे

कद हुआ धीरे थीरे हुुआ ऊँचा

मित्रता ने कस वह फांस लगाई 

मेहनत की कद्र दी पाठ पढाई

खड़ा जहाँ हूँ आज हम सभी अभी जहाँ

इन मित्रता ने है वह मुकाम दिलाई।।

  

      "मित्रता वह गुल है

         जो गुलशन को रंग दे

         मित्रता वह शूल है

         जो चिलमन को बिंध दे।।"


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