महिला सशक्तिकरण
महिला सशक्तिकरण
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कटे पंखों के संग, मैं और कितनी उड़ाने भर पाऊँ ?
या अब हार मान लूँ ,या स्त्री कहलाने पर झुँझलाऊँ ?
हर बार इन नैनो में, कुछ चमचमाते सपनों के संग,
मैं फिर उसे अपना मान, कह देती सब अंतर्मन के रंग।
सुनकर पहले वो मुस्कुराता,
फिर अपने पौरुष का दंभ दिखाता,
फिर कर मुझे अपमानित अच्छे से,
स्त्री होने का एहसास दिलाता।
मैं मन ही मन तब टूट जाती,
कुछ ना कर पाने पर अश्क बहाती,
फिर अगले ही पल पोंछ अश्रु अपने,
ले कलम स्याही से लिखती जाती।
"मैं सशक्त हूँ .... कोई ना रोक सका मुझे,
इस कलम के दम से नहीं मिटेंगे नामोनिशां मेरे"
क्या हुआ जो आज कुछ कमा ना सकी,
शब्दों के जोर से देखो कुछ गंवा ना सकी।
आज मेरा भी नाम लिया जाता है,
प्रसिद्ध लेखकों की श्रेणी में,
एक प्रकाशित लेखिका बन गिनती होती है,
मेरी भी इस अंतराजाल के ढेरों में।
महिला सशक्तिकरण एक उपहास नहीं,
अपितु ये वो एक सम्मान है,
जिसे गर कोई पुरुष दिल से समझे,
तो वो मानव नहीं भगवान है।।