मेरी तरह झूठे हो तुम
मेरी तरह झूठे हो तुम
इतने नाराज क्यों हो तुम
इतने मायूस क्यों हो तुम
क्या खता क्या भूल है हमारी
जो चाहकर भी बताते नहीं हो तुम।।
कभी तो इतना हॅसते थे तुम
आज देखकर मुस्कराते नहीं हो तुम
कभी तो घण्टों बातें करते थे तुम
आज नाम तक लेते हो नहीं तुम।।
कभी तो हर बात बता थे तुम
आज हर बात छिपाते हो तुम
क्या राज है इस मन में
जिसे दिल में दफनाते हो तुम।।
अगर नाराज नहीं तो
मेरी तरह झूठे हो तुम
लफ्जों से बयां नहीं करोगे
जो ऑखों में है उसे
कैसे छिपाओगे तुम।
हमें शिकायत तुमसे
नहीं अपने दिल से है
जो बिना सोचे ही तुम्हें
अपना समझ बैठा।
नहीं मालूम था इतने
बेदर्द दिल के हो तुम
वरना इस नासमझ दिल को
पहले ही समझा देते हम।