मेरी प्यारी साइकिल की गाथा
मेरी प्यारी साइकिल की गाथा
साइकिल रही है हमारी ऐसी साथी बचपन से साथ निभाती आई।
उसको छाया में रख हम हमेशा उसको धूप से बचाते आए।
ताकि उसकी ट्यूब धूप से फट ना जाए।
अब तक भी यह साथ निभाती जा रही है हमारा।
फर्क सिर्फ इतना है पहले इस पर बैठकर रास्ता पार करते थे।
मीलों साइकिल चलाकर स्कूल कॉलेज जाते थे।
अपने दोस्तों से मिलने जाते थे।
बहुत मौज मनाते थे।
बहुत व्यस्त सड़कों पर हमने साइकिल बहुत चलाई है।
उसकी छाया भी हमने धूप में चलाते हुए देखी है।
साथ पसीना भी हमने बहुत बहाया है।
अब साइकिल एक जगह खड़ी हो हमको कसरत करना सिखाती है।
हमारी जिंदगी में तो इसकी बहुत अहमियत है।
रोज जब तक एक घंटा साइकिल ना कर ले चैन नहीं हम पाते हैं।
वजन घटाना शरीर और घुटनों की कसरत के लिए यह एक अक्सीर इलाज है।
एक जगह खड़े होकर के भी मिलों का रास्ता तय कर जाती है।
इतनी कसरत कर जाते हैं।
जो हमने अपनाया है और जिंदगी में उसका फायदा पाया है।
कभी-कभी इसको ऑयलिंग कर धूप में रखते हैं।
तब इसकी छाया भी हमको नजर आती है।
बाकी तो साइकिल हमारा सबसे बढ़िया साथी है।
भले कार कितनी भी अहम हो।
मगर हमारी यह दो पहिए की गाड़ी सब पर भारी है।
बचपन में इस पर बैठकर हमको ऐसा लगता था जैसे हम एंबेसडर कार को घूम रहे हैं।
और अपने आप को कहीं का शहंशाह समझ रहे हैं।
ऐसी प्यारी साइकिल हमको आज भी बहुत पसंद आती है।
प्यारी साइकिल पर समर्पित स्वरचित रचना।