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Vivek Agarwal

Action Inspirational

4.8  

Vivek Agarwal

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मेरी मिट्टी

मेरी मिट्टी

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मेरी मिट्टी 


है मेरी मिट्टी मेरा मंदिर, मैं करूँ दंडवत इसे माथा टेक।

राष्ट्र धर्म ही सर्वोपरि है, भले विद्यमान हो यहाँ पंथ अनेक।

नहीं माँगता कुछ और प्रभु मैं, बस एक यही वरदान दे दो।

मरके मैं मिट्टी में मिल जाऊँ, इस मिट्टी से हो जन्म प्रत्येक।


पुनर्जन्म ले इसी धरा पर, यदि चन्दन बनकर आऊँ।

चाह नहीं मंदिर में जाकर, देवों का मस्तक सजाऊँ।

न मुझे कामना मैं बनूँ, रत्न जटित महलों का द्वार।

चिता बन वीर जवानों की, मैं जनम सफल कर जाऊँ।


यदि कोमल पुष्प बनूँ मैं, मुझे गहनों में मत गूँथना।

नहीं स्वीकार्य मेरे मन को, अप्सराओं का भी सूँघना।

मेरी ये इच्छा नहीं की मैं, उत्सवों में उल्लास जगाऊँ।

देव मेरी बस एक कामना, वीरों के क़दमों को चूमना।


अन्न बन कर इस मिट्टी से, रूप नया जो मैंने पाना। 

दूर रखना देवालय से, ना मेरा छप्पन भोग चढ़ाना।

यही प्रार्थना मेरी तुमसे, कर लो भगवन तुम स्वीकार।

सेना की रसद बनाकर, मुझे बस सीमा पर पहुँचाना।


सौभाग्य से जो आत्मा मेरी, पुनः मनुष्य जन्म को पाये।

स्वेद-शोणित की प्रत्येक बूँद, बस काम देश के आये।

हर पल मेरे जीवन का, हो राष्ट्र उन्नति में ही अर्पित।

कर प्राण समर्पित देश को, तन इस मिट्टी में मिल जाये।


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