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सुरशक्ति गुप्ता

Abstract

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सुरशक्ति गुप्ता

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मेरी मां

मेरी मां

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मां की होठों की मैं लाली हूँ

मै अपनें पिता की आखों का नूर। 


नूर सजाए फिरते हैं

एक दिन कर देंगे अपने से दूर। 


फिर मै दूसरों के चरणों की

पादुका बन जाउंगी 


जिसे न भरत उठाएंगे और

न मैं सीताराम कहलाऊँगी।


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