अच्युतं केशवं

Abstract

5.0  

अच्युतं केशवं

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मेरी जिन्दगी की कलम में

मेरी जिन्दगी की कलम में

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मेरी जिन्दगी की

कलम में

स्याही थी,


जिससे हृदय के

शोक श्वेत

कागज पर

उकेरता था,


स्याह आखर

समय बदला

और तुम आयी,


तुम्हारी धवल

आत्मा के प्रकाश में

रोशन हो उठा

मेरा ह्रदय,


मेरा आखर

आखर

अब

मेरी कलम में

स्याही नहीं

रौशनाई है।


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