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Ruchi Mittal

Abstract

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Ruchi Mittal

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मेरे सपनों की उड़ान

मेरे सपनों की उड़ान

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एक बड़ी दीवार है मेरे स्वप्निल सपनों के आगे,

दीवार के पार,सपनों के पीछे,मन मेरा भागे,

जहाँ बिखरी हैं मेरे सपनों की किरचें(कांच के टुकड़े),

वो सपने,जो दिल से हैं मैंने सींचे,

जिनको साकार करने का मन करता है,

इस दीवार को तोड़ने का मन करता है,

उड़ना चाहती हूँ,पंख फैलाने को हूँ तैयार,

कोशिशे भी होती रहती है बारंबार,

परंतु..किंतु,पांव हैं बंधे हुए,

न टूटने वाली जंजीर से जड़े हुए,

जंजीर टूटटी नहीं,ख्वाब रौंद जाती है,

मेरी उड़ान शुरू होने से पहले ही दम तोड़ जाती है,

बहुत कुछ सोच रखा था ए जिंदगी करने को,

मन करता था पंख लगा उड़ने को,

लेकिन तू भी कितनी निर्दयी निकली,

जितनी बार हौसला दिखाया,उतनी बार पंखों को कुतर निकली,

तुझमें और मुझमें ठनी थी,

ऐसा नहीं कि कोशिशों में मेरे कमी थी,

जिद्दी मैं भी बड़ी थी,

परंतु कुतरे पंखों से कितनी उड़ान भर पाती,

वापस जमीन पर खुद को गिरा हुआ पाती,

हिम्मत अभी न हारी है,फिर से कोशिश ज़ारी है,

जब तक जिंदगी है,बार-बार ऐसा हौसला दिखाती रहूँगी,

आ तू कर मुझसे दो-दो हाथ जिंदगी,

तेरे वजूद को खाक में मिलाती रहूँगी।


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