मेरे कमरे की खिड़की पर
मेरे कमरे की खिड़की पर
मेरे कमरे की खिड़की पर
एक चिड़िया रोज आती हैं
खिड़की के दरवाजे पर
दस्तक रोज दे जाती हैं
शीशे के इस दरवाजे पर
अनगिनत चोट मार जाती है
न जाने कौन सा आशिक
इसमें खोज जाती है
मेरे कमरे की खिड़की पर
एक चिड़िया रोज आती हैं !
खूब खेलती , चहचहाती, गाती
अपने जैसे को देख खुश हो जाती
न जाने कौन सा वेदना रोज कह जाती
वह चिड़िया जब दरवाजे को छूती
मेरे कमरे की खिड़की पर
एक चिड़िया रोज आती हैं !
वह चिड़िया भी शायद हमलोगों सा
जो शीशे को देख खुश हो जाती हैं
शायद दर्पण उससे छलावा करता
तब भी वह चिड़िया मदहोश हो जाती हैं
जैसे रोज सामाजिक दर्पण हमें ठगता
उसे भी अनगिनत घाव दे जाती हैं
मेरे कमरे की खिड़की पर
एक चिड़िया रोज आती हैं !
रात भर चोंच का पीड़ा उसे रुलाती है
तब भी दिन में जाने की जल्दी उसे सताती हैं
वह बस यह सोचती थोड़ा मिलन तो बाकी था
कल थोड़ा और प्रहार करूंगी फिर मिलूंगी
उसे उस कैद से निकाल आजाद करूंगी
मेरे कमरे की खिड़की पर
एक चिड़िया रोज आती हैं !
उस मासूम चिड़िया को क्या पता
जिसे वह आजाद करना चाहती है
वह खुद वहीं एक कैदी है जो कैद है
अनगिनत रंग-बिरंगे भावनाओं से
जैसे आज हम कैद हैं,
अनगिनत चाहत से
मेरे कमरे की खिड़की पर
एक चिड़िया रोज आती हैं !
अपने प्रतिबिंब को चिड़िया समझ
जिसे आजाद करना चाहती है
जिससे प्रीत लगाना चाहती हैं
वह चिड़िया बस मृगतृष्णा है
मेरे कमरे की खिड़की पर
एक चिड़िया रोज आती हैं !
उस चिड़िया को तब ज्यादा दुःख होगा
जब मौत उसके दरवाज़े पर खड़ा होगा
सारे चाँद-सितारे उस पर हँस रहा होगा
उसकी न समझी पर व्यंग्य कर रहा होगा
पर, वह चिड़िया ख़ुद को कोस मर रही होगी
मेरे कमरे की खिड़की पर
एक चिड़िया रोज आती हैं !
