मेरे ख्यालों की गवाही
मेरे ख्यालों की गवाही
मेरे कुछ देखे हुए ख्यालों की तुम कोई गवाही
तुझसे जाने क्यों बना रखी है मैंने इतनी दूरी
तेरी शर्तों पर जब जीना और मरना है हमें
तो फ़िर मुझे बताओ कि क्यों मुझसे नज़रें हो
छुपाती
अजनबी अगर होते तो तुझे भूल भी जाते हम
इतने अफसानों के बाद कौन भूलता है किसे
ये जो चेहरा है न तुम्हारा अब हर जगह दिखता
है हमें
ये कैसा मर्ज है आख़िर दिल का हाल सुनाऊ
किसे
एक तुम ही तो हो जो धड़कन से पहचान लेते हो
माथे पर मेरे देखकर सिकन तुम पास आ जाते हो
भला इससे भी ज्यादा क्या कोई जान सकता है
किसी को
तुम तो मेरे गुजरते हालत से सबसे ज्यादा
वाक़िफ़ हो ..