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Prashant Beybaar

Abstract Classics

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Prashant Beybaar

Abstract Classics

मेरे हाल पे हँसने वाले

मेरे हाल पे हँसने वाले

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मेरे हाल पे हँसने वाले

मेरे हाल पे हँसने वाले


लबों की हँसी पे न जा

काँटों भरी हथेली देख

फ़क़त कली पे न जा


ख्वाबों में सागर देख के

बहुतों ने करती तारी है

खुद डब के समंदर देख

किस्सा-निगारी पे न जा।


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