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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

Abstract

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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

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मेरा प्यारा मित्र

मेरा प्यारा मित्र

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कोई न कोई रिश्तेदारी,

संपत्ति में न करता भागेदारी

बस देता अच्छी रायशुमारी,

कृष्ण सुदामा जैसी यारी


जो मेरे आँखों में बसता है

सच्चा मित्र वही होता है


उसे देखते हो जाए हर्ष,

जो चाहता मेरा उत्कर्ष

करता हो मुझसे विमर्श,

विवेक से देता निष्कर्ष


जो प्रतिपल साथ खड़ा रहता है

अच्छा मित्र वही होता है


तृण भर न उसे अभिमान,

वह है एक नेक इंसान

रखता सदा मित्र का मान,

रिश्तों में वह न हो बेईमान


मुझसे कदम मिलाकर चलता है

सच्चा मित्र वही होता है


मुझे कष्ट पड़े तो आए काम,

सच्चे मन से दे अंजाम

न देखे वह कोई परिणाम,

कभी न चाहे अपना नाम


जो सत्पथ को दिखलाता है

अच्छा मित्र वही होता है


जो करता हो पूर्ण समर्पण,

जीवन उसका हो जैसे दर्पण

व्यक्तित्व में दिखे उसके आकर्षण,

वक़्त आने पर न बने कृपण


मेरे दिल बस जाता है

सच्चा मित्र वही होता है


नहीं करे कोई प्रतिकार,

आँखों में दिखता हो प्यार

कभी नही बने होशियार,

मेरे जीवन में लाए निखार


जो जीवन में नव रंग भरता है

अच्छा मित्र वही होता है।


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