मेरा पथ
मेरा पथ
मेरा पथ उस बवण्डर में जा चुका है
जिसमें तुम गुम-सुम सी बैठी हो,
उस अंधियारे मुख के बाहर रुखसत है
जिसको तुम कल्पना का नाम देती हो,
उन सुनसान राहों से गुजरे कैसे, बता दो
जिस पथ पर हमने-तुमने स्वप्न संजोये हो,
राह इतनी मुश्किल क्यों कर चली हो
जैसे तुम रोज मेरा इम्तिहान ले रही हो,
नादान उन स्वप्न को फिर से संजोने में
क्यूँ तुम मेरा सुख-चैन ले रही हो
उन हँसी पलों को यूँ तो न ले जाओ
जिसमें तुम्हारी रूह बसी हो।