मेरा ग्रामीण जीवन
मेरा ग्रामीण जीवन
कुछ दिनों पूर्व मेरा अपने गांव जाना हुआ था
गांव की मिट्टी में पैर रखते ही दिल दीवाना हुआ था
पुरानी यादें बरबस लौट आई थीं
मिट्टी तो वही थी पर उसमें "वो" गंध न आई थी
अपनापन और भाईचारे का मेला सा लगा करता था
हर एक दिल खुले दरबार की तरह सजा करता था
वो तीन मकान जिनमें मैं रहा था, आज भी वहीं थे
सुनसान पड़े हुए थे, खाली दिल से थे, आबाद नहीं थे
हमारी जुदाई से शायद गमगीन हो रहे थे
किसी कोने में पड़े वृद्ध की तरह रो रहे थे
वो चौक जिसमें हम खेलते थे, वीरान पड़ा था
इतने वर्षों बाद मुझे वहां देखकर हैरान बड़ा था
मैं अपने बच्चों को एक एक चीजें दिखलाता जा रहा था
उस समय मुझे लगा कि मेरा बचपन लौटकर आ रहा था
जिन गलियों में हम छुप्पम छुपाई खेलते थे
खेल के शौक के लिए सर्दी गर्मी सब कुछ झेलते थे
वो गलियां किसी विधवा की मांग सी सूनी लग रही थी
मुझे देखकर वे सब खुशी से झूम रही थीं
वर्षों के इंतजार के बाद वे ऐसे लाज से सिमटी हो
जैसे पति के विदेश से लौटने पर नव विविहिता झूम उठी हो
मेरे बचपन का साक्षी, नीम का पेड़ आज भी वहीं खड़ा था
शायद मेरी उपेक्षा के कारण वह बेजान सा पड़ा था
इसके बाद हम हमारी दुकान देखने बाजार चले गये
इसी दुकान पर मेरी आंखों में अनगिनत अरमान पले गये
बाजार में चहल पहल पहले से कहीं अधिक थी
वो "चूड़ी वाली गली" आज भी पहले सी "रसिक" थी
वहां पर हुस्न का मेला आज भी लग रहा था
हर चेहरा उमंग से गुलाब सा खिल रहा था
इस गली में न जाने कितने दिल जुड़ गये थे
जवानी की दहलीज पे कुछ कदम गलत दिशा में मुड़ गये थे
बच्चों को अब खेत दिखाना बाकी रह गया था
घास का गठ्ठर सिर पर लादना अब बोझिल लग रहा था
भैंस गायों के बंधने की जगह अभी वहीं की वहीं है
वो कुंआ जिसपे नहाते थे, सूख गया है, पर यहीं है
प्राइमरी स्कूल क्रमोन्नत होकर मिडिल स्कूल बन गया
हाई स्कूल अब शिक्षा का बड़ा केंद्र बन गया
वो बस अड्डा जहां से मैं जयपुर पढने आया था
मुझे देखकर आज वह गौरव से बहुत हर्षाया था
उसी ने मेरी तरक्की की राह बनाई थी
वो जगह भी दिखाई जहां हुई मेरी सगाई थी
पत्नी ने तीसरे मकान में प्रवेश कर कहा
"इस घर में मैं दुल्हन बनकर आई थी"
अपने पौत्र नन्हे शिवांश में अपना बचपन खोज रहा हूं
अपने ग्रामीण जीवन की एक झलक सबको परोस रहा हूं।