मेघ पाती
मेघ पाती
मैं कालिदास तो नहीं किंतु,इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा
मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा
बूंद बूंद की पाती पढ़ना,
फिर अंजुली से बहा देना
देना तुम भी संदेशा अपना
पर मेरी पीर कह जाने देना
अश्रु भरे नयनों में रिक्त स्थान थोड़ा,पर रखना
वहा बसने को स्वप्न मिलन का, प्रवर भेजूंगा।
मन की यक्ष वेदना को.....
चिंताओ की रेखाएं अनगिनत
विलुप्त तुम्हारे भाल से होगी
कपोल पर स्पर्श अनुभूति मेरी
बरखा संग शीत बयार से होगी
विचारो की कालरात्रि में,भौर का विश्वास पर रखना
मन का संपूर्ण तमस हरने को, प्रकाश प्रखर भेजूंगा
मन की यक्ष वेदना को....
श्याम घटा छंट जाने के पूर्व
तुम उनमे उष्ण आस भर देना
कह कर मेघो से अपने सब भाव
और उनमे तुम सांस भर देना
सांसो को मेघ से लेकर स्वयं को अजर अमर समझूंगा
मैं कालिदास तो नहीं किंतु,इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा
मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा