लोकेंद्र की कलम से
दृष्टि मेरी तुम्हारे लोचन से मिली, मानो क्षण त्रिवेणी के आचमन का जल हुआ। दृष्टि मेरी तुम्हारे लोचन से मिली, मानो क्षण त्रिवेणी के आचमन का जल हुआ।
सो को मेघ से लेकर स्वयं को अजर अमर समझूंगा मैं कालिदास तो नहीं किंतु।।।।। सो को मेघ से लेकर स्वयं को अजर अमर समझूंगा मैं कालिदास तो नहीं किंतु।।।।।