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Chetan Kashyap

Abstract

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Chetan Kashyap

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मेघ बरसे

मेघ बरसे

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बरसे

बरसे

बरसे मेघ

सुबह- सवेरे


भीगे तृण

और भीगे पात

नम भीतर से मन

नम बाहर गात

नेह बरसे


क्या बना संयोग

कि कितने-कितने लोग !

अज्ञ मन

कृतज्ञ

देख कर के


दान का प्रतिदान क्या हो

किसी का अभिमान क्या हो

क्षुद्रता कितनी घनी है

नत शीष विनीत

कर जुड़े !


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