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Vishu Tiwari

Abstract Inspirational

4.5  

Vishu Tiwari

Abstract Inspirational

मदिरा सवैया छंद

मदिरा सवैया छंद

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राज कुमार कहे पितु से सब राज हमार न देहु पिता।

भाग्य सुभाग सदा बनता तलवार उठा कर लेहु पिता।

पांडव की न कहो न सुनो सब राज समाज सनेहु पिता। 

नोक बराबर भूमि न देहु यहां अधिकार न देहु पिता।


कौरव राज बली सबसे कबसे सब पांडव ओज दिखे।

मोर गदा जब वार करे सपने दुरयोधन रोज दिखे।

भीष्म सुने अति क्रोध भरे गुरु द्रोण कृपा भरि सोज दिखे।

न्याय नहीं अन्याय करे प्रिय दम्भ भरा सु स्वरोज दिखे।।


राम सभा सब वानर भालु विचार करें कसु पार करें।

सागर की लहरें उठतीं गिरतीं सरकार कहें भवपार करें।

राम कहें विनती करना अब सागर के न विचार करें।

बात सुहात सहोदर ना कहते मत कायर के सम कार करें। 


शुद्ध करो मन भाव सखे सुविचार सदा उर में रखिए।

क्रुद्ध स्वभाव कुभाव न हो हरि को अपने मन में रखिए।

ध्यान व ज्ञान करो अर्जन लिप्त रहो न कभी धन में।

काज करो सत कर्म सदा हरि पाद गहो नित जीवन में।


क्या परिवार यही जिसमें छल ही छल दिखता रहता।

त्याग समर्पण व्यर्थ लगे कपटों से हल रखता रहता।

प्रेम प्रसंग कहाॅं दिखता हर बार सहोदर ही छलता।

आपन स्वार्थ दिखे सबको तब भ्रात सदा रहता छलता।


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